गणतंत्र शब्द का साधारण अर्थ है ’’लोगों का तंत्र’’ यानी कि जिस संविधान द्वारा हमारे देश में कानून का राज स्थापित है, उस संविधान से ही हमारे देश के तंत्र को मजबूती मिलती है और उसी तंत्र को भारतवासी मानते हैं। इसलिए हमारे देश को गणतांत्रिक देश बोला जाता है। हमारे देश में हमेशा से लोगों के लिये संविधान का एक अहम स्थान है। 26 जनवरी को ही 1950 में भारतीय संविधान को एक लोकतांत्रिक प्रणाली के साथ भारत देश में लागू किया गया था। कहा जाए तो 26 जनवरी को ही हमारे गणतंत्र का जन्म हुआ। और भारत देश एक गणतांत्रिक देश बना। यह दिन उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी याद करने का दिन है, जिन्होंने अंग्रेजों से भारत को आजादी दिलाने के लिए वीरतापूर्ण संघर्ष किया। आज के दिन ही भारत ने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की स्थापना के लिए उपनिवेशवाद पर विजय प्राप्त की।
गणतंत्र दिवस हमारे संविधान में संस्थापित स्वतंत्रता, समानता, एकता, भाईचारा और सभी भारत के नागरिकों के लिए न्याय के सिद्धांतों को स्मरण और उनको मजबूत करने का एक उचित अवसर है। क्योंकि हमारा संविधान ही हमें अभिव्यक्ति की आजादी देता है। अगर देश के नागरिक संविधान में प्रतिष्ठापित बातों को अनुसरण करेंगे तो इससे देश में अधिक लोकतांत्रिक मूल्यों का उदय होगा। भारत का संविधान सबको समान अधिकार देता है, भारतीय संविधान किसी से भी जाति, धर्म, ऊंच-नीच और अमीरी-गरीबी के आधार पर कभी भी भेदभाव नहीं करता है।
आज भारत एक गणतांत्रिक देश है, जिसमें शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं का महत्वपूर्ण स्थान होना चाहिए। आज भारत सरकार इस समय देश में बहुत सारी जनहितकारी योजनाएं चला रही है लेकिन शिक्षा, चिकित्सा और बेरोजगारी पर अभी बहुत काम होना बाकी है। आज भारत सरकार और सभी राज्य की सरकारों को देश को शिक्षा माफियाओं और चिकित्सा माफियाओं से मुक्ति के लिए अभियान चलाना चाहिए, जिससे कि देश में शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं का बाजारीकरण रुक सके और कमीशनखोरी का बोलबाला खत्म हो सके। आज के समय भारतीय गणराज्य में शिक्षा सुविधाओं और चिकित्सा सुविधाओं में कमीशनखोरी का बोलबाला है। आज भारत में अच्छी शिक्षा और अच्छी चिकित्सा सुविधाओं के लिए काफी खर्चा करना पड़ता है, जिससे कि गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों को अपने बच्चों की शिक्षा के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है और चिकित्सा सुविधाओं के लिए घर-बार तक बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। आज प्राइवेट सेक्टर में शिक्षा प्राप्त करने के लिए बच्चों की ड्रेस से लेकर किताबों तक में बड़े स्तर का कमीशन होता है, अगर स्कूल या कॉलेज फीस की बात की जाए तो ये आसमान को छूए जा रही है जिस पर सरकार का भी कोई नियंत्रण नहीं है। इसके लिए भारत सरकार को एक नीति निर्धारित करनी चाहिए जिससे कि देश की शिक्षा व्यवस्था से भ्रष्टाचार खत्म हो सके।
आज बेशक भारत विश्व की उभरती हुई शक्ति है। लेकिन आज भी भारत मने कई स्थानों पर कन्या जन्म को दुर्भाग्य माना जाता है, और आज भी रूढ़िवादी समाज में हजारों कन्याओं की भ्रूण में हत्या की जाती है। सड़कों पर महिलाओं पर अत्याचार होते हैं। सरेआम महिलाओं से छेड़छाड़ और बलात्कार के किस्से आम बात है। कई युवा (जिनमें भारी तादात में लड़कियां भी शामिल हैं) एक तरफ जहां हमारे देश का नाम ऊंचा कर रहे हैं। वहीं कई ऐसे युवा भी हैं जो देश को शर्मसार कर रहे हैं। दिनदहाड़े युवतियों का अपहरण, छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न कर देश का सिर नीचा कर रहे हैं। हमें पैदा होते ही महिलाओं का सम्मान करना सिखाया जाता है पर आज भी विकृत मानसिकता के कई युवा घर से बाहर निकलते ही महिलाओं की इज्जत को तार-तार करने से नहीं चूकते। इस सबके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार शिक्षा का अभाव है। शिक्षा का अधिकार हमें भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के रूप में अनुच्छेद 29-30 के अन्तर्गत दिया गया है। लेकिन आज भी देश के कई हिस्सों में में नारी शिक्षा को सही नहीं माना जाता है। नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के साथ भारतीय समाज को भी आगे आना होगा। तभी देश में अशिक्षा जैसे अँधेरे में शिक्षा रुपी दीपक को जलाकर उजाला किया जा सकता हैे।
देश में आज अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश विरोधी ताकतें बढ़ रही हैं, यही देश विरोधी ताकतें संविधान की गलत तरीके से व्याख्या करती हैं। यही देश विरोधी ताकतें देश में अराजकता फैलाने में अहम् भूमिका निभाती है। आज देश में देश विरोधी ताकतें संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का गलत तरीके से उपयोग कर रही हैं। अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग करना भारतीय संविधान का अपमान है। देश में आज कुछ ताकतें तुष्टिकरण का काम कर रही हैं और देश को धर्म के आधार पर बांटने का प्रयास कर रही हैं। देश में आज इन्ही देश विरोधी ताकतों की शह पर कोई पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाता है तो कोई भारत मुर्दाबाद के नारे लगाता है और कुछ राजनैतिक दल ऐसे लोगों की तरफदारी करके उनका साथ देकर उनका संरक्षण देते हैं। ऐसे देश विरोधी लोग इन्हीं राजनैतिक दलों की शह पर देश का माहौल खराब करने की कोशिश करते हैं।
भारत देश बेशक एक स्वतंत्र गणराज्य सालों पहले बन गया हो। लेकिन इतने सालों बाद आज भी देश में धर्म, जाति और अमीरी गरीबी के आधार पर भेदभाव आम बात है। लोग आज भी जाति के आधार पर ऊंच-नीच की भावना रखते हैं। आज भी लोगों में सामंतवादी विचारधारा घर करी हुयी है और कुछ अमीर लोग आज भी समझते हैं कि अच्छे कपड़े पहनना, अच्छे घर में रहना, अच्छी शिक्षा प्राप्त करना और आर्थिक विकास पर सिर्फ उनका ही जन्मसिद्ध अधिकार है। इसके लिए जरूरत है कि देश में संविधान द्वारा प्रदत्त शिक्षा के अधिकार के जरिए लोगों में जागरूकता लायी जाये। जिससे कि देश में धर्म, जाति, अमीरी-गरीबी और लिंग के आधार पर भेदभाव न हो सके।
भारत देश में कानून बनाने का अधिकार केवल भारतीय लोकतंत्र के मंदिर भारतीय संसद को दिया गया है। जब भी भारत में कोई नया कानून बनता है तो वो संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) से पास होकर राष्ट्रपति के पास जाता है। जब राष्ट्रपति उस कानून पर बिना आपत्ति किये हुए हस्ताक्षर करता है तो वो देश का कानून बन जाता है। लेकिन आज देश के लिए कानून बनाने वाली भारतीय लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था भारतीय संसद की हालत दयनीय है। जो लोग संसद के दोनों सदनों में प्रतिनिधि बनकर जाते हैं, वो लोग ही आज संसद को बंधक बनाये हुए हैं। जब भी संसद सत्र चालू होता है तो संसद सदस्यों द्वारा चर्चा करने की बजाय हंगामा किया जाता है। और देश की जनता के पैसों पर हर तरह की सुविधा पाने वाले संसद सदस्य देश के भले के लिए काम करने की जगह संसद को कुश्ती का मैदान बना देते हैं। जिसमें पहलवानी के दांव पेचों की जगह आरोप प्रत्यारोप और अभद्र भाषा के दांव पेंच खेले जाते हैं, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। आज जरूरत है कि देश के लिए कानून बनाने वाले संसद सदस्यों के लिए एक कठोर कानून बनना चाहिए। जिसमे कड़े प्रावधान होने चाहिए। जिससे कि संसद सदस्य संसद में हंगामा खड़ा करने की जगह देश की भलाई के लिए अपना योगदान दें।
भारत देश में कानून का राज स्थापित हुये बेशक कई दशक हो गए हों लेकिन आज भी देश के बहुत लोग अपने आप को कानून से बढ़कर समझते हैं। और तमाम तरह के अपराध करते हैं। आज जरूरत है भारत के प्रत्येक नागरिक को भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त कानूनों का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए। और उनका पालन करने के लिए जागरूक करना चाहिए, जिससे की समाज और देश में फैले अपराधों पर रोक लग सके। इसके साथ-साथ भारतीय संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों को जन-जन तक सरकार को पहुँचाना चाहिए। इन मौलिक अधिकारों को देश के आखिरी आदमी तक पहुँचाने के लिए सरकार के साथ-साथ भारतीय समाज की भी अहम भूमिका होनी चाहिए। तभी भारत देश रूढ़िवादी सोच से मुक्ति पा सकता है।
76वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत के प्रत्येक नागरिक को भारतीय संविधान और गणतंत्र के प्रति अपनी वचनबद्धता दोहरानी चाहिए और देश के समक्ष आने वाली चुनौतियों का मिलकर सामूहिक रूप से सामना करने का प्रण लेना चाहिए। साथ-साथ देश में शिक्षा, समानता, सदभाव, पारदर्शिता को बढ़ावा देने का संकल्प लेना चाहिए। जिससे कि देश प्रगति के पथ पर और तेजी से आगे बढ़ सके।
– ब्रह्मानंद राजपूत