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असतो मा सदगमय…. तमसो मा ज्योतिर्गमय |All About Deepotsav in Hindi

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असतो मा सदगमय…. तमसो मा ज्योतिर्गमय

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी दीपोत्सव आने वाला है। भारत बहुधर्मी देश है और यहाँ पर धार्मिक पर्वों को उत्सवों के तौर पर मनाया जाता रहा है। दीपोत्सव का महत्व सनातन धर्मियों के साथ-साथ सिख, जैन, और बौद्धों के लिए भी महत्वपूर्ण है और उनकी अपनी मान्यताएँ हैं। हम हर वर्ष दशहरा पर रावण का पुतला जलाते हैं लेकिन रावण का पुतला जलाने से पहले हर व्यक्ति सोचे कि क्या उसका चरित्र प्रभु राम के समकक्ष है यदि नहीं तो रावण को जलाना बेमानी है। आज के दौर को देखते हुए मुझे पारसी धर्म के प्रवर्तक जरचुष्ट के वचनों का स्मरण हो आता है….. उन्होंने कहा था कि हर व्यक्ति के हृदय में दो व्यक्तियों का चरित्र निवास करता है एक को अहुरा मज्दा कहते हैं जो भलाई की ओर ले जाता है और समाज राष्ट्र परिवार के उन्नयन के लिए कार्य करता है वहीं दूसरा चरित्र जिसे उन्होंने अहिरमन कहा। वह व्यक्ति को बुराई, दूसरों को कष्ट पहुँचाने, अपमानित करने, हिंसा करने, भ्रष्टाचार करने की ओर खींच कर ले जाता है।

आज के दौर में मनुष्य के भीतर अधिकांश रूप से अहिरमन चरित्र ज्यादा पनप चुका है और इसी कारण तमाम विसंगतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। राजनीतिक एवं धार्मिक उन्मादिता के चलते स्थितियाँ अब असामान्य होती जा रही हैं और इसमें राजनीतिक दलों का पक्ष और विपक्ष पूर्ण रूप से जिम्मेदार है। लगता है कि एक पक्ष इस्लामिक उन्माद का हमदर्द बनकर सत्ता पाना चाहता है तो दूसरा पक्ष हिंदू पक्ष के सहारे आगे बढ़ना चाहता है। लेकिन यदि यह अंदेशा सही हुआ तो क्या आने वाले समय में इस प्रकार से हम सिविल वार अर्थात गृह युद्ध की और नहीं बढ़ जाएँगे। क्योंकि जब भारत 1947 में विभाजन के साथ आजाद हुआ था। उस समय विभाजन का दंश झेलते हुए भीषण नरसंहार हुआ। जिसमें बहुत बड़ी आबादी काल के ग्रास में समा गई इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख के अलावा ईसाई, जैन व अन्य धर्मों के लोग भी शामिल थे। विभाजन की पटकथा 1867 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खान ने द्विराष्ट्र सिद्धांत के साथ लिख दी थी। इस सिद्धांत को अल्लामा इकबाल, लियाकत अली एवं मोहम्मद अली जिन्ना ने आगे बढ़ाया और इस्लामिक राष्ट्र की मांग कर डाली जो वर्तमान के बांग्लादेश एवं पाकिस्तान को मिलाकर निर्मित हुई थी। यद्यपि द्विराष्ट्र सिद्धांत का ठीकरा सुनियोजित तरीके से वीर सावरकर पर इतिहासकारों ने मढ़ दिया।

मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में 1947 की इबारत को लिखने के लिए ही हुई थी। मुस्लिम लीग सुनियोजित तरीके से 1906 से कदम बढ़ाते हुए 1947 तक पहुँची थी। क्या देश भर में फिर से वही इबारत लिखने का प्रयास हो रहा है ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि विगत वर्षों से एक पक्ष द्वारा धार्मिक उन्माद के चलते रामनवमी, हनुमान जयंती, गणपति विसर्जन, दुर्गा विसर्जन, होली, दीपावली, दशहरा इत्यादि पर्वों पर पथराव आगजनी की घटना व तोड़फोड़ को अंजाम दिया जाता है। जो कि हमारे लोकतांत्रिक देश में कतई बर्दाश्त नहीं होना चाहिए। सारा काम सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है और इसके लिए यदि जिम्मेदार हैं तो दोबारा कहूँगा देश का सत्ता पक्ष, विपक्ष एवं तमाम खुफिया एजेंसियाँ। 2014 में जब नरेंद्र मोदी सत्ता में आए थे उस समय उन्होंने विचार प्रकट किया था कि वह भारत को विश्व गुरु के रूप में स्थापित करने का प्रयास करेंगे। लेकिन वर्तमान में विभिन्न तरीकों से राष्ट्र को तोड़ने की नीति जो वर्तमान में चल रही है वह उस प्रण को निश्चित तौर पर बाधा पहुँचाएगी ऐसा मेरा मानना है। कल मेरा एक मित्र कह रहा था कि समाज में गरीबी इस प्रकार के उन्माद का मूल कारण है जबकि मेरा ऐसा मानना है कि ज्यादातर गरीब परिवारों के बच्चे या तो जिनके माता-पिता दिवंगत हो गए हैं या कष्ट कर उन्हें पढ़ा रहे हैं वे अधिक विनम्र व मितव्ययी होने चाहिए। लेकिन व्यवस्था वहाँ बिगड़ जाती है जहाँ किसी भी आर्थिक परिस्थिति में दीनी तालीम को लेना अधिक अच्छा
समझा जाता है बजाय कि दुनियावी तालीम को लेना। अर्थात धार्मिक शिक्षा को विज्ञान एवं आधुनिक शिक्षा से अधिक अच्छा मानना। और यदि आधुनिक शिक्षा ली भी है तो उसे प्राथमिक अथवा माध्यमिक स्तर पर छोड़ देना और दुहाई गरीबी को देना यह बढ़ते समाज के लिए घातक है। क्योंकि आधुनिक शिक्षा के अभाव में जनता को बरगलाना अधिक आसान होता है ऐसे में बच्चा तार्किक नहीं बल्कि अंध उन्मादी होगा, साथ ही राष्ट्र के लिए घातक होगा। इस पर सरकार को विवेचना करनी चाहिए।

इस वर्ष गणेश उत्सव के दौरान व विसर्जन के समय समाचारों के अनुसार ठाणे, भिवंडी महाराष्ट्र, मांड्या, बुलढाणा कर्नाटक, मंदसौर मध्यप्रदेश, बलरामपुर छत्तीसगढ़, महोबा पर उत्तरप्रदेश में आगजनी व पथराव दूसरे पक्ष की ओर से किया गया।

जबकि दुर्गा विसर्जन के समय विभिन्न राज्यों में अलग-अलग घटनाएँ आईं जो मुख्य घटनाएँ घटित हुईं वह बहराइच, गोंडा, कौसांबी, गोरखपुर कुशीनगर, हावड़ा, कोलकाता, कदमतला त्रिपुरा, करीमगंज असम, गढ़वा झारखंड प्रमुख हैं। इन स्थानों पर हत्या लूट मंदिर में आगजनी पथराव इत्यादि किया गया।

सरकार को जुलूस झांकी इत्यादि निकालने पर कड़े नियम व कानून बनाने चाहिए। इसमें किस प्रकार के नारे लगाए जाएँ या ना लगाए जाएँ उस पर भी नियम लागू होना चाहिए और नियमों को तोड़ने पर कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान हो। मैं व्यक्तिगत रूप से किसी भी प्रकार के धार्मिक जुलूस व प्रदर्शन के पक्ष में नहीं हूँ। मेरी राय में इस पर रोक होनी चाहिए क्योंकि यह वर्तमान में आस्था का प्रतीक न रहकर अपना बल व ताकत दिखाने का प्रतीक भर रह गया है।

राष्ट्र को गढ़ना इतना आसान

नहीं होता है। उसके लिए समर्पण, इच्छाशक्ति और सख्ती बहुत जरूरी है। भारतीय व्यक्तित्वों में मुझे स्वामी विवेकानंद और डॉक्टर दीनदयाल उपाध्याय, वहीं वैश्विक तौर पर देखा जाए तो मुझे कमाल पाशा अतातुर्क, चे ग्वेरा, ली क्वान के व्यक्तित्व एवं उनके विचार अनुकरणीय लगते हैं। यहाँ पर दो व्यक्तित्वों के विषय में उल्लेख करना चाहूँगा। पहले हैं आधुनिक तुर्की के निर्माता कमाल पाशा अतातुर्क। जिन्होंने महिला स्वाभलंबन, आधुनिकता शिक्षा पर अधिक काम करके देश को इस्लामिक कट्टरवाद से बाहर निकाला और कट्टरवादी लोगों को पूरे देश से चुन-चुन कर समाप्त किया। एक देश, एक कानून के तहत तुर्की को गढ़ा। जिसकी वजह से तुर्की लगभग 90 वर्षों तक धार्मिक उन्माद से दूर रहा। कमाल पाशा आतातुर्क एक फौजी जनरल थे और सेना के सख्त निर्देश के साथ उन्होंने संपूर्ण धार्मिक उन्मादी समाज को एक कड़ा संदेश दिया कि जो राष्ट्रीयता के हिसाब से, राष्ट्र को गढ़ने के हिसाब से, राष्ट्र की एकरूपता के हिसाब से, काम नहीं करेगा उसे या तो देश छोड़ना पड़ेगा या उसे समाप्त कर दिया जाएगा, और इस प्रकार आधुनिक तुर्की के बनने का काम हुआ था क्योंकि उससे पहले ऑटोमन साम्राज्य के समय खलीफा द्वारा संपूर्ण तुर्की को इस्लामिक नियमों के साथ चलाया जाता था जिसे कमाल पाशा ने समाप्त किया। ठीक उसी प्रकार से सिंगापुर के निर्माता ली क्वान ने सिंगापुर को विभिन्न भाषाओं व जातीय समूह से बाहर निकाल कर देश को एकरूपता दी और नियम तोड़ने वालों पर कड़े कानून व नियम लगाए जिसकी वजह से सिंगापुर की स्थिति आज विकसित राष्ट्रों में अग्रणी है। देश एपीजे अब्दुल कलाम व स्वामी विवेकानंद के विचारों का है। इसे हर नागरिक को समझना चाहिए। त्यौहार हर्षोल्लास का प्रतीक हैं उन्माद का नहीं। दीपावली कम धमाकों वाले पटाखों से मनायें। बच्चों बुजुर्गों को सुरक्षित रखें। स्वयं स्वस्थ रहें मस्त रहें। सर्वे भवन्तु सुखिन सर्वे संतु निरामया।

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